विश्व धर्म सम्मलेन की असल कहानी - शिकागो 1893

2 अप्रैल 2011,वर्ल्ड कप का फाइनल मैच था। नुवान कुलशेखरा हाथ चिपकाती एक्शन दिखाकर गेंद फेंकते है और मिस्टर धोनी एक लमहर छक्का टानकर उसी पोज में खड़े रहते हैं ताकि फोटुग्राफर अपना काम कर सके। कमेंट्री में रवि शास्त्री अलग राग अलाप रहे हैं, दर्शक अलग नाच रहे है, खिलाड़ी एक-दूसरे के साथ चिपक कर रो रहे हैं और 10 साल बाद भी दुनिया धोनी के उस छक्के की जय-जयकार लूप में देखती, सुनती है। मगर आज भी गौतम गंभीर के 97 रन दीए तले अंधेरे के समान माना जाता हैं।

स्वामी विवेकानंद भी शिकागो के उस सम्मेलन के महेंद्र सिंह धोनी साबित हुए और विश्व व्यापार मेला उस गौतम गंभीर के जैसा रहा जिसके योगदान पर किसी की नजर नही गई।

वास्तव में स्वामी विवेकानंद शिकागो जिस विश्व धर्म सम्मेलन 1893 में हिस्सा लेने गए थे। वो एक बहुत बड़े मेले का एक बहुत छुटकन सा हिस्सा मात्र था।  दरअसल 1851 में विश्व मे इस प्रकार की पहली प्रदर्शनी का आयोजन रानी विक्टोरिया के शासनकाल के पच्चीस वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में लंदन के हाइड पार्क में हुआ था। लंदन में हुए इस मेले को देखने के लिए करीब 60 लाख दर्शक मौजूद हुए थे। पहले मेले के अपार सफलता से उत्साहित होकर इसकी अगली मेजबानी 1889 में फ्रांस के पेरिस शहर के हाथ लग गई थी । इसी विश्व मेले में दौरान ही मशहूर एफ़िल टावर का भी उद्घाटन किया गया था। पेरिस में लगे इस मेले को देखने दुनियाभर से 3 करोड़ 20 लाख दर्शक जमा हुए थे।

इसके अगले आयोजन की धरती अमेरिका तय हुई मगर मेजबानी के लिए शिकागो, न्यूयॉर्क, वाशिंगटन, सेंट लुइज के बीच अभी काफी झोटा पटक का दंगल होना बाकी था। न्यूयॉर्क शहर के अखबार शिकागो पर चुटकी लेते हुए लिखते थे कि किस तरह वहाँ के नेता अव्वल दर्जे के फेंकू होते हैं, काम कम हवाबाजी में ज्यादा रहते हैं। उधर की ठंडी हवा भी जानलेवा होती है। वहीं शिकागो में आयोजन करवाने के समर्थक उसकी भौगोलिक स्थिति का हवाला देते थे। क्योंकि वह अमरीका के मध्य में स्थित था। लाखों दर्शकों को आसानी से ठहरने की व्यवस्था शिकागो खुद कर सकता था। मेले की रूपरेखा तैयार करने के लिए इनके पास भारी भरकम भौकाली इंजीनियर, गृह-निर्माण कला के स्पेशलिस्ट भी थे।

5 दौर की वोटिंग के बाद 154 मत के साथ बहुमत लेकर शिकागो मेजबानी जीत गया और इस जीत की घोषणा पर 24 दिसम्बर,1890 के दिन पेन चलाते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति हेरिसन ने मुहर लगा दी।

सबने मन मे ठाना था पिछले वालों से ज्यादा भौकाली होना चाहिए, इतना कि कभी किसी ने कल्पना तक नही की हो। इसके खातिर संग़ठन खड़ा किया गया और शिकागो के सभी महत्वपूर्ण लोगों को इससे जोड़ा गया। तब के सर्वोत्कृष्ट विश्वकर्मा दूत डेनियल बनर्हम इस मेले के प्रमुख शिल्पकार नियुक्त हुए थे।

मिशिगन झील के किनारे इस मेले को सजाने की योजना बनकर तैयार हुई। we the people of America वालों ने ऐसा बवंडर मेला तैयार किया था जिसे पूरा देखने के लिए दर्शकों को 150 मील पैदल चलना पड़ता था।बताओ यार....

इतना सीरियस होकर मेला कौन तैयार करता है भला, यहाँ दिल्ली वालों को प्रगति मैदान आधा घूमने में भूख लग जाती थी।

मेला समिति के जेंटलमैन जब बैठक के लिए बैठे थे तब समिति के अध्यक्ष चार्ल्स बोले ने ही विश्व मेले में धर्म सम्मेलन के आयोजन का सुझाव दिया था। प्रस्ताव का स्वागत हुआ और दुनियाभर में इसका प्रचार-प्रसार फैला दिया गया था। काश उस समय व्हाट्सएप्प होता तो विवेकानंद भी आमंत्रण व्हाट्सएप्प पर ही पाते और आएंगे की नही इसका अप्रूवल भी तुरंत दे डालते। 

खैर,

स्वामी जी शिकागो आए और ऐसा छाए की दुनिया ने शिकागो को 1893 में विश्व मेले के लिए नही बल्कि विश्व धर्म सम्मेलन के लिए याद किया और ये शायद स्वामी जी का गर्दा मचाऊं आध्यात्मिक भाषणों का ही असर था कि पश्चिम ने भारत को तब विवेकानंद की आंखों से देखा।

स्वामी जी के कारण ही अगला विश्व धर्म सम्मेलन काशी में आयोजित करने का प्रस्ताव पारित हुआ था। परंतु ब्रिटिश सरकार का औपनिवेशिक केंद्र होने तथा अन्य कारण से वह कभी हो ना सका और 1893 केवल और केवल स्वामी विवेकानंद के नाम हो गया।

इस पूरी बकैती के पीछे एक ही ध्येय था। हमनें जिसे केवल एक धर्म सम्मेलन माफिक पौधा समझा। उसके पीछे विश्व मेले जैसा वटवृक्ष खड़ा था। दुनिया शायद स्वामी विवेकानंद को नही जान पाती, शायद स्वामी विवेकानंद उस प्रसिद्धि तक नही पहुँच पाते यदि विश्व मेला उन्हें यह मंच नही देता।


गज़ब कहानी रही ददा......


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समस्याओं पर बकैती छोड़कर अब समाधान के ट्रैक पर चलने और चलाने वाला, गांधी-सावरकर भक्त,मूडी पत्रकार