सावित्री 9 साल की थी जब उसका विवाह 12 साल के ज्योतिराव फुले से हुआ था।बाल विवाह से सावित्री के सपनो के टूटने का कोई लेनादेना नही था क्योंकि सावित्री अनपढ़ थी।
तब के समाज मे स्त्री शिक्षा को पोंगा-पंडित बौद्धिक कोरोना समझते थे जो उनके पाखंड को वेंटिलेटर पर चढ़ाकर मारेगा इसीलिए सावित्री के हाथ मे बेलन पकड़ाया जाए,ऐसा खंडोजी नवसे पाटिल(पिताजी) ने तय किया मगर ससुरी नियति सावित्री को इस बौद्धिक कोरोना का वैक्सीन बनाने पर तुली हुई थी और इस वैक्सीन को बनाने वाले डॉक्टर थे इनके पति ज्योतिराव फुले....
ज्योतिराव फुले ने तय किया कि सावित्री के हाथ मे बेलन नहीं कलम ही होनी चाहिए और इस तरह घर मे ही सावित्री की शिक्षा प्रारंभ हुई।
पश्चिम का नारीवाद जहाँ पुरुषों से नफरत करना सिखाता रहा वहीं सावित्री व ज्योतिराव ने भारतीय नारीवाद की पटकथा गढ़ डाली।
भारतीय नारीवाद यानी जो समानता नहीं समन्वय की बात करें, आपसी सहयोग से सामाजिक भेदभाव को दूर करने की बात करें, साथ मिलकर समाज को आगे बढ़ाने की बात करें।
सावित्री ने कभी अपने पिछड़ने का कारण पुरषों को नही माना क्योंकि मानसिक विकृति लिंग देखकर दिमाग मे नहीं उपजती,सावित्री ने पितृसत्ता को गरियाने से लाख बेहतर ज्योतिराव सँग पुरुषवादी समस्या के समाधन को ढूंढना माना।
दोनों ने मिलकर ऐसा विद्यालय खोला जहाँ शिक्षा आपसे आपकी जाति आपका लिंग आपका धर्म नही पूछती और इस तरह देश को पहली महिला अध्यापिका "सावित्रीबाई फुले" मिली।
अड़चने यहाँ भी कम नही थी।बौद्धिक कोरोना की वैक्सीन सावित्रीबाई जब विद्यालय जाती तो अखिलेश यादव जैसे वैक्सीन विरोधी लोग उनपर मलमूत्र,कूड़ा फेंका करते थे मगर "वो स्त्री है कुछ भी कर सकती हैं" टाइप महिला थी तुरंत विद्यालय जाकर थैले में रखी दूसरी साड़ी बदल लेती थी।
स्त्री शिक्षा,विधवा पुनर्विवाह, सती विरोधी जनजागरण जैसे अनेकों काम वैक्सीन बनाने वाले डॉक्टर ज्योतिराव फुले अपनी सावित्रीबाई फुले नामक वैक्सीन से करवाते। यही नहीं एक गर्भवती असहाय महिला काशीबाई के पुत्र को दत्तक पुत्र बनाकर उसे उच्च शिक्षा दी और डॉक्टर बनाया।
समाज और नारीवादी दीदियों को अवश्य सावित्रीबाई फुले का गुणगान करना चाहिए मगर पंकज त्रिपाठी जैसा स्पोर्टिंग रोल निभाने वाले ज्योतिराव फुले को याद करना उससे भी ज्यादा जरूरी हैं।
आज सावित्री "द सावित्रीबाई फुले" ना होती अगर साथ "ज्योतिराव फुले" ना होते। स्त्री शिक्षा के मंजिल पर सावित्रीबाई की गाड़ी पहुँची जरूर मगर एक पहिये पर नही दो पहिये पर यानी जीवन मे समानता ही सब कुछ नही समन्वय भी बहुत जरूरी है।
Write a comment ...